Teesta Setalvad Supreme Court docket Gujarat HCs Determination To Cancel Bail Tushar Mehta – तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर SC जजों की राय अलग-अलग, CJI के पास भेजा

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नई दिल्ली:

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत रद्द करने के गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़ा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या आप ये भरोसा देने को तैयार हैं कि आप तुरंत हिरासत में नहीं लेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ पिछले 8-9 महीने से जमानत पर है. अगर वो तुरंत सरेंडर नहीं करेंगी तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा. गुजरात सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि हाईकोर्ट को कम से कम सांस लेने का वक्त देना चाहिए था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के three जजों की इस मुद्दे पर राय अलग-अलग रही इस कारण इस मामले को सीजेआई के पास भेज दिया गया है.

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“हाईकोर्ट को सरेंडर के लिए वक्त देना चाहिए था”

अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दो सितंबर को अंतरिम जमानत दी थी. उस बात को 8-9 महीने बीत गए हैं.  हाईकोर्ट को सरेंडर के लिए इतना वक्त तो देना चाहिए था कि बड़ी अदालत विचार कर सके. जस्टिस ओक ने कहा कि जब इतने महीनों से वो जमानत पर हैं तो अगले 72 घंटों में कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा. कोर्ट ने कहा कि हम अभी हैंडीकैप हैं क्योंकि छुट्टी का दिन है और हमने आदेश पूरी तरह से पढ़ा नहीं है. ये बड़ा आदेश है. 

हमें मामले की पूरी सुनवाई करनी होगी: सुप्रीम कोर्ट

यह अदालत जमानत के माध्यम से अंतरिम सुरक्षा नहीं दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  हमें मामले की पूरी सुनवाई करनी होगी. क्या एचसी द्वारा कोई निष्कर्ष दर्ज किया गया था?  क्या कोई निष्कर्ष दर्ज किया गया है कि उसने 22 सितंबर के बाद शर्तों का उल्लंघन किया है.

तुषार मेहता ने क्या कहा?

वह एक विशेष मामले में जमानत पर है और अपराध 2002 का है. जमानत देने के बाद, अदालत को यह जानना होगा कि पूरे राज्य को कैसे बदनाम किया गया, गवाहों को कैसे सिखाया गया. तुषार मेहता ने कहा कि तीन जजों की बेंच ने कहा था कि तीस्ता ने गवाहों को सिखाया है. उसे जेल जाने दिया जाए. कानून की महिमा बरकरार रहे. शनिवार के दिन इस तरह राहत नहीं दी जानी चाहिए. उसने हर संस्थान को घुमाया है.

तीस्ता सीतलवाड़ पर क्या आरोप हैं?

गुजरात उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका शनिवार को खारिज कर दी और उन्हें 2002 के गोधराकांड के बाद हुए दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए सुबूत गढ़ने से जुड़े एक मामले में तत्काल आत्मसमर्पण करने को कहा गया.  न्यायमूर्ति निर्जर देसाई की अदालत ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज की और उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने को कहा था क्योंकि वह पहले ही अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर हैं. 

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